Tuesday, April 5, 2011

Dil ki Baat


Photo: Lightning over Viñales Valley, Cuba

कुछ महीनों पहले की बात है. मेरे छोटे बेटे ने स्कूल जाना ही शुरू किया था. ऐसे में मेरा सारा ध्यान इसी बात पर होता कि वो समय पर तैयार हो जाये और बिना रोये-धोये स्कूल बस में बैठ जाए. उस दिन सुबह से हलकी बारिश हो रही थी. मन नहीं कर रहा था कि इतनी निश्चिन्त कि नींद सो रहे मेरे लाडले को जगाऊं. सो मैं जाकर उसके बगल में लेट गयी. सुबह के वो कुछ क्षण ....जब मैं बेटे के साथ बिताती हूँ.....मुझमें दिन भर के लिए स्फूर्ति और उर्जा भर देता है. शायद हर माँ के साथ ऐसा ही होता है. जीवन के संघर्ष से जूझने के लिए भले ही वो घंटो या मीलों कि दूरी तय कर ले, पर बच्चे के मीठे से स्पर्श को वो हर पल साथ लिए चलती है.

खैर मैं उस दिन कि बात कर रही थी जब मैंने अनमने से बेटे को स्कूल के लिए तैयार किया. "छुट्टी करा दूँगी तो अगले दिन फिर स्कूल जाने में नखरा करेगा", यही सोचकर मैं हाथ में छत्री लिए हुए उसके साथ बस स्टॉप तक गयी. बेटा रूठा हुआ मेरे पीछे दुबक गया. पिछली बार जब उसने ऐसा किया था, तो बस के आने पर उल्टा घर कि ओर भाग गया था! सहेली ने बस ड्राईवर को रुकने का बहुत आग्रह किया, तब जाकर किसी तरह उसे बस में बिठाया था. मेरा मन फिर डरने लगा. बस जल्दी आ जाए और ये शुभ-शुभ चला जाए. अब तक बारिश कि गति भी तेज हो गयी थी. तभी बस आकर सामने रुकी और मैंने और मेरी दोस्त ने जैसे तैसे दोनों बच्चों को जल्दी से बस में चढ़ा दिया. आदतन हम वहीँ रुककर  इधर-उधर की  बातें करने लगे, पर मन में कुछ खटक रहा था. हम खड़े ही थे कि तभी एक और स्कूल बस आकर रुकी. सामने बच्चों की टीचर  बैठी थीं. हमारे तो होश उड़ गए. यानि...बच्चों को  हमने गलत बस में चढ़ा दिया था!!!!!


बस सफ़ेद रंग की थी, इसके अलावा हमें और कुछ भी याद नहीं था. टीचर परेशान होकर कभी  फ़ोन घुमा रही थीं, तो कभी हमारी लापरवाही को कोस रही थीं. फिर मुझे कुछ सुनाई नहीं देने लगा. बारिश तेज हो चुकी थी ओर मेरे दिल कि धड़कन धीमी! काठ  की  तरह मैं खड़ी रही...जाने कब तक. सब कुछ सिमट कर शुन्य हो गया था.

कुछ आवाजें अभी भी आ रही थीं - "जरा देख समझ कर बच्चे को बस में चढ़ाना चाहिए था!" "माओं को गप  करने से कहाँ फुर्सत होती है." "गलती किसी से भी हो सकती है"."पर यही गलती अगर किसी आया से हो, तो उसे जेल पहुंचाने की तयारी शुरू हो जाती"."लापरवाही की भी हद हो गयी.".......

पता नहीं वो बारिश की बूँदें थीं या आँखों से बहता खारा पानी, मैं अन्दर तक भीग चुकी थी !फिर सब्र का बाँध टूट गया. मैं फूट फूट कर रोने लगी.सड़क पर बदहवास कि तरह रोती जा रही थी  और  बौखलाई सी किसी भी स्कूल बस के पीछे भागने लगती! शायद अंततः कुछ लोगों ने मुझे किनारे ले जाकर बेंच पर बैठा दिया. कुछ सहानुभूति जताते हुए पास खड़े रहे.

कैसी माँ हूँ मैं?अपने बच्चे को कहाँ भेज दिया मैंने ? अब  कहाँ ढून्दूंगी उसे? कैसा होगा वो? कब देखूँगी मैं उसे? हे इश्वर! दया कर! माफ़ कर!! मेरा बच्चा मुझे लौटा दे! बारिश कम हो गयी थी पर आंसूं थम नहीं रहे थे!...................................................


 
 
और फिर हलचल होने लगी. किसी ने मुझे जकझोर कर सामने देखने का इशारा किया. मेरी छोटी सी दुनिया  नन्हे  क़दमों से चलकर मेरे पास आ रही थी ! थोडा घबराया, थोडा सहमा-सा...मेरा बेटा सामने आकर खड़ा हो गया. मैंने लपककर  अपने लाडले को बाँहों में ले लिया और  पागलों की तरह उसे चूमती रही. थोड़ी ही देर में वह टीचर की गोद में बैठकर स्कूल चला गया. बाद में पता चला कि जिस स्कूल बस में मैंने ग़लतफ़हमी में चढ़ा दिया था, वह पास ही के स्कूल जाती थी. ड्राईवर ने जब इनका अलग उनिफ़ोर्म देखा तो बैग खोलकर डायरी से घर का पता ढूंढकर दोनों बच्चों को वापस घर के गेट तक छोड़ गया!  मैं इश्वर के उस दूत से मिल तो नहीं पायी, पर खोयी खुशियों को मेरे घर का पता बताने के लिए मन कोटि कोटि उसका ऋणी है!!!  जाने कितनी सारी उमड़ती घुमड़ती भावनाओं के साथ मैं घर लौटी....पति  पूरी घटना से अनभिज्ञ अब तक सो रहे थे. सिर्फ सत्रह मिनट हुए थे ...और मैं एक मौत जी कर लौटी थी!









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